जी बहन जी के बाद जी भैया जी वाली प्रवित्ति से बचना होगा, चाटुकारों अवसरवादीयों से बचना होगा, चुनाव बीत चुका है। राजनीतिक समीक्षक अपने अपने तरीके से चुनावी समीक्षा में लगे हैं। कोई जीत की समीक्षा कर रहा है तो कोई हार के कारण खोज रहा है। 2007 में प्रचंड बहुमत लाकर यूपी में सरकार बनाने वाली मायावती जी बहन जी के नाम से मशहूर हो गयी। भले ही उनकी राजनीतिक जमीन खिसक चुकी है किन्तु आज भी बहन जी खुद को किसी महारानी से कम नहीं समझती हैं। कहा जाता है कि मायावती को बहन जी कहलाना बहुत पसंद है। भले ही कोई उन्हें बहन मानता हो या न मानता हो किन्तु उनको खुश करने के लिये बहन जी बहन जी बोलकर उनकी खुशामद करने वालों की पूरी फौज है। यहीं खुशामद कराने के चक्कर में मायावती अपने लोगों से दूर होती गयी। आप देश के राष्ट्रपति से मिलने की कल्पना तो कर सकते हैं किन्तु कहा जाता है कि बहन जी से मिल पाना सबसे बस की बात नहीं है। राजनीति की बुलंदियों को छूने के बाद उनके अंदर अहंकार इतना प्रविष्ट हो गया कि खुद को ब्रिटेन की महारानी समझने लगी।
हालात ऐसा हुआ कि आज मायावती अपना वह वोटबैंक खोती गयी जिसके दम पर बसपा का टिकट लेने के लोग अटैची भर—भरकर लाइन में खड़े रहते थे।
2007 में मायावती ने अपनी सोशल इंजिनियरिंग से 206 विधानसभा सीटें जीतकर अपनी सरकार बनायी थी जो 2012 में 80 सीटों पर और 2017 में 19 सीट फिर 2022 में मात्र एक सीट पर सिमट गयी। कहा जाता है कि मायावती ने सत्ता हासिल करने के बाद अहं के चलते लोगों को तरजीह देना छोड़ दिया और राजनीति से बाहर होती चली गयी।
अब जी बहन जी के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव जी भैया जी कहलाना पसंद करते हैं। 2012 में पिता मुलायम सिंह यादव द्वारा खड़ी की गयी पार्टी से सीएम तो बन गये लेकिन मुलायम सिंह यादव का वह गुण नहीं अंगीकार कर पाये जो उन्हें नेता जी के नाम से प्रचलित किया था। कहा जाता है कि संघर्ष के दिनों में साथ देने वाले किसी भी व्यक्ति को नेता जी नहीं भूले और सबको सम्मान दिया। वहीं जमी जमाई सम्पत्ति पाकर भेया जी बने अखिलेश को अहंकार जकड़ता गया। अपने से वयोवृद्ध नेताओं से पैर छुआना, पत्रकारों के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग, भाषणों में घमंड दिखाना, किसी भी नेता को कुछ भी बोल देने वाले अखिलेश के इर्द गिर्द चाटुकारों की एक बड़ी फौज खड़ी है। राजनीति के साथ मीडिया में उन्होंने चाटुकार खड़े कर लिये हैं। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि उन तक न तो सही सूचनायें पहुंचती और न ही पार्टी के प्रति समर्पित लोगों से वह मिल पाते हैं।
मायावती तो अपनी पारी खेल चुकी है किन्तु अखिलेश को अभी खुद को साबित करना है। क्योंकि अभी तक वे अपने दम पर कुछ नहीं कर पाये हैं। बल्कि पिता की बनायी हुई राजनीतिक छवि को भी चाटुकारों से घिरकर खराब कर रहे हैं। तो जी बहन जी के बाद अखिलेश याद का जी भैया जी का यह वर्जन कहीं चाटुकार अंधेरों में गुमनाम न हो जाये । उससे पहले भैया जी को जमीनी हकीकत से रूबरू होना होगा।