अयोध्या, मथुरा और काशी के धार्मिक मुद्दों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा भले काशी और मथुरा में क्लीन स्वीप करने में सफल रही। मगर एक हकीकत ये भी है कि काशी की वह सीट जिसके क्षेत्र में काशी विश्वनाथ कारीडोर आता है पर भाजपा को कड़ी टक्कर मृत्युंजय महादेव मंदिर के महंत और सपा प्रत्याशी किशन दीक्षित से मिली। बड़े ही काटे की टक्कर के बाद आखरी तीन चक्र की मतगणना के बाद किशन दीक्षित से मंत्री नीलकंठ तिवारी ने जीत हासिल किया।
वही अयोध्या में दो सीट भाजपा हारी है। जबकि तीन पर उसने जीत दर्ज कर लिया है। बताते चले कि खुद अखिलेश यादव ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेस में अयोध्या से समाजवादी पार्टी की जीत का दावा प्रत्याशी का नाम ले कर किया था। पार्टियों के चुनाव प्रचार के दौरान भी ये धर्मस्थल अक्सर चर्चा में रहे थे।
अयोध्या सीट से वर्तमान विधायक वेद प्रकाश गुप्ता फिर से जीत गए हैं। उन्हें कुल 1,12,169 (49.11%) वोट मिले। समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री रह चुके तेजनारायण पांडेय उर्फ़ पवन पांडेय 92,067 (40.31%) वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे। बहुजन समाज पार्टी के रवि प्रकाश यहाँ गेम चेंजर के तौर पर रहे और उन्होंने 17,540 (7.68%) वोटों के साथ तीसरा स्थान हासिल किया। कॉन्ग्रेस प्रत्याशी रीता यहाँ चौथे स्थान पर रहीं। खास बात ये रही कि यहाँ नोटा (NOTA) को आम आदमी पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी से अधिक यहाँ वोट मिले हैं। भाजपा ने अयोध्या जिले की रुदौली और बीकापुर सीटों पर जीत हासिल की है। वहीं मिल्कीपुर और गोसाईंगंज सीट पर समाजवादी पार्टी ने भाजपा को पटखनी दे डाली है।
मथुरा जिले की सभी 5 विधानसभा सीटो की बात करे तो ये सभी सीटें भाजपा की झोली में आई हैं। यहाँ मथुरा शहर से भाजपा सरकार में मंत्री श्रीकांत शर्मा ने 1,51,729 (60.41%) वोटों के साथ एकतरफा जीत दर्ज की। उन्होंने कॉन्ग्रेस प्रत्याशी प्रदीप माथुर को हराया जिन्हें 47,770 (19.02%) वोट मिले। बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी एस0 के0 शर्मा 28,913 (11.51%) वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी देवेंद्र अग्रवाल को 17,408 (6.93%) वोट ही मिल पाए। यहाँ पर NOTA को आम आदमी पार्टी और शिवसेना के उम्मीदवारों से अधिक वोट मिले। इसी के साथ मथुरा जिले में आने वाली छाता माट, गोवर्धन और बलदेव सीटों पर भी भाजपा ने जीत दर्ज की है।
वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। अखिलेश यादव ने EVM विवाद को यहीं से हवा दी गई थी। यहाँ कुल 8 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें सभी 8 पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। वाराणसी कैंट से भाजपा प्रत्याशी सौरभ श्रीवास्तव ने 1,47,833 (60.63%) वोटों के साथ जीत दर्ज की है। इस सीट पर समाजवादी पार्टी की पूजा यादव 60,989 (25.01%) वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहीं। तीसरे स्थान पर रहे कॉन्ग्रेस प्रत्याशी और पूर्व सांसद जो चुनाव पूर्व बड़े दावे कर रहे थे वह कही जीत के आसपास भी नही दिखाई दिए. कांग्रेस के राजेश कुमार मिश्रा को 23,807 (9.76%) ही वोट मिल पाए।
बताते चले कि इसी वाराणसी संसदीय सीट पर कांग्रेस के टिकट पर राजेश मिश्रा सांसद रह चुके है। वर्ष 2017 में वह अपनी सबसे नजदीकी हार का दावा पुरे चुनाव में करते रहे। वही इस बार उन्होंने कैंट विधानसभा चुना था और नामांकन के बाद वह लगातार खुद को ब्राहमण और मुस्लिम मतो का हकदार बता रहे थे. मगर नतीजो में उन्हें दस फीसद भी मत न मिलना इस बात को ज़ाहिर करता है कि वह यह चुनाव लड़ ही पाए है। यहाँ से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी कौशिक कुमार पांडेय 7,068 (2.9%) वोटों के साथ चौथे नंबर पर रहे। यहाँ भी नोटा (NOTA) को आम आदमी पार्टी प्रत्याशी से अधिक वोट प्राप्त हुए। इसी के साथ वाराणसी जिले की ही शिवपुर, पिंडरा, अजगरा, शहर उत्तरी और शहर दक्षिणी में भी भाजपा प्रत्याशियों को जीत हासिल हुई है। भाजपा के साथ गठबंधन पर चुनाव लड़ रहे अपना दल (एस) ने सेवापुरी और रोहनिया सीटों पर जीत दर्ज की है।
वाराणसी दक्षिणी से मिली कांटे की टक्कर
वाराणसी की सबसे रोचक टक्कर दक्षिणी सीट पर रही जहा भाजपा ने अपने मंत्री नीलकंठ तिवारी को दुबारा चुनाव मैदान में उतारा था। इसी सीट के लिए ईवीएम विवाद के बीच अखिलेश यादव ने जीत का दावा किया था। दावा हवा हवाई भी नही था क्योकि हर एक चक्र की मतगणना के बाद नीलकंठ तिवारी को कांटे की टक्कर मिल रही थी। यहाँ से समाजवादी पार्टी ने म्रत्युन्जय महादेव मंदिर के महंत किशन दीक्षित को टिकट दिया था। किशन दीक्षित भले इस सीट पर दस हज़ार के करीब वोट से पीछे रह गए मगर चुनाव में कांटे की टक्कर यहाँ भाजपा को मिली थी। 21वे चक्र तक की मतगणना के दरमियान किशन दीक्षित आगे बढ़त बना कर रखे थे।
मगर 22वे से लेकर 25वे चक्र की गणना में एकतरफा वोट भाजपा को मिलने से किशन ये सीट भले हार गये हो मगर कांटे की टक्कर से एक बात सिद्ध कर गए कि यह सीट भले एक बार फिर भाजपा जीत गई है, मगर इस सीट पर आने वाले समय में भाजपा को अब खतरा हो सकता है। किशन दीक्षित इस सीट पर महज़ 10,800 के करीब मतों से पीछे रहे और चुनाव हार गए। मगर इस सीट पर कांटे की टक्कर सांसे रोकने वाली थी।