उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव समाप्त होने के बाद एक बार फिर से ईवीएम चर्चा में है। वाराणसी समेत यूपी के कई जिलों में ईवीएम को लेकर विवाद हो रहा है। कई जगह सपा कार्यकर्ता ईवीएम को लेकर सवाल उठा रहे हैं। आइये एक नजर डालते हैं EVM की कार्यप्रणाली पर. हम आपको आसान भाषा में समझाते हैं की EVM बदलना या वोट चोरी कैसे संभव है. जिस तरह हमारी मोटरसाइकिल या कार का एक ही नंबर होता है, वैसे ही हर एक ईवीएम का भी पूरे देश में एक ही नंबर होता है। EVM का निर्माण भेल कंपनी की ओर से किया जाता है। इसको बनाने से रख रखाव तक की पूरी व्यवस्था ऐसी है कि इसे बदलना या चुराना किसी रिजर्व बैंक को लूटने से भी ज्यादा कठिन है।
आइए जानते हैं की EVM का रखरखाव कैसे होता है और उसमे सेंध लगाना कितना मुश्किल हैं.
1. हर EVM का यूनिक नंबर होता है। एक नंबर के पूरे देश में दो EVM नहीं हो सकते।
2. एक राज्य से दूसरे राज्य और एक जिला से दूसरे जिला को जब ईवीएम भेजा जाता है तो उसका नंबर भारत निर्वाचन आयोग के पास रिकॉर्ड होता है।
3. जिला मुख्यालय में ईवीएम आने के बाद राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में भेल के इंजीनियर तकनीकी जांच करते हैं। जांच में खराब ईवीएम भेल के वेयर हाउस में चला जाता है। कुल ईवीएम का 10% प्रशिक्षण के लिए रिजर्व रख लिया जाता है।
4. उसके बाद भारत निर्वाचन आयोग की ओर से प्रतिनियुक्त ऑब्जर्वर, सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, डीएम तथा संबंधित निर्वाचन अधिकारी की उपस्थिति में ईवीएम का फर्स्ट रेंडमाइजेशन (ताश के पत्तों की तरह ईवीएम को मिलाना, जिससे उसको अलग से पहचाना न जा सके) किया जाता है। इसके बाद स्ट्रांग रूम में ईवीएम को स्टॉक कर दिया जाता है।
5. चुनाव से 72 घंटा पहले एक बार फिर उक्त सभी प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें से 10 परसेंट रिजर्व रखा जाता है। सेकेंड रेंडमाइजेशन के दौरान राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ साथ सभी प्रत्याशियों के एजेंट, विधानसभा वार ऑब्जर्वर, निर्वाचन अधिकारी, डीएम, केंद्रीय अर्धसैनिक बल की उपस्थिति में स्टैटिक मजिस्ट्रेट को पोलिंग के लिए ईवीएम दिया जाता है।
6. किस नंबर का ईवीएम किस बूथ पर गया है, इसकी सूची प्रत्याशियों के एजेंट को भी उपलब्ध कराया जाता है। इसकी कॉपी आब्जर्वर के माध्यम से चुनाव आयोग तक भेजी जाती है। सुरक्षाबलों की निगरानी में स्टैटिक मजिस्ट्रेट बूथ तक EVM पहुंचाते हैं।
7. किस ईवीएम में कितना वोट पड़ा है, इसका रिकॉर्ड पीठासीन अधिकारी के माध्यम से पोलिंग एजेंट के साथ साथ ऑब्जर्वर तक को उपलब्ध कराया जाता है। पोलिंग के बाद सुरक्षाबलों की निगरानी में स्टैटिक मजिस्ट्रेट स्ट्रांग रूम में ईवीएम जमा करवाते हैं।
8. स्ट्रांग रूम में ईवीएम नंबर के आधार पर प्रत्येक ईवीएम के लिए अलग-अलग खाचा तैयार रहता है। नंबर के आधार पर उसी खाचा में ईवीएम को सुरक्षित रखा जाता है।
9. स्ट्रांग रूम की सुरक्षा 4 लेयर में होती है। सुरक्षा की जिम्मेवारी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की होती है। स्ट्रांग रूम को सील कर दिया जाता है। अब कई स्ट्रांग रूम में सीसीटीवी भी लगाया जा रहा है मतगणना के दिन स्ट्रांग रूम का सील आब्जर्वर की उपस्थिति में ही तोड़ा जाता है।
10. काउंटिंग के लिए पूर्व से निर्धारित क्रमवार खाचा से ईवीएम निकाला जाता है। ईवीएम का नंबर तथा उस में डाले गए कुल मत का मिलान प्रत्याशियों के काउंटिंग एजेंट के समक्ष किया जाता है।
ऐसे में बचाव और सुरक्षा के इतने चैनल पार करने के बाद ही कोई ईवीएम बदल सकता है। या चोरी कर सकता है। जो लगभग असंभव जैसा ही है।