नितिन उपाध्याय: रूस और यूक्रेन में इस समय स्थिति भयावह हो गई है, दोनों देशों के बीच दिन प्रतिदिन तनाव चरम पर पहुंच रहा है. अगर रूस और यूक्रेन के मामले का सरलीकरण करना हो तो यूक्रेन को पाकिस्तान मान लीजिए और यूक्रेन के रूसी बहुल प्रान्तों दोनेत्स्क और लुहांस्क को पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) समझ लीजिए. तब भारत की मजबूरी थी कि उसे सुरक्षित रहना है तो पाकिस्तान के दो हिस्से करने ही होंगे. आज ये ही मजबूरी रूस की भी है. अगर रूस को अपनी सीमा पर अमेरिकी सैन्य अड्डों को रोकना है तो यूक्रेन को तोड़ना ही होगा. आधार भी साफ ही है और वजह भी स्पष्ट है. दोनेत्स्क और लुहांस्क में रूसी मूल के लोग बड़ी संख्या में हैं. जैसे पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली थे.
जहां तक सही, गलत की बात है, युद्ध में सारे तर्क विजेता और ताकतवर के पक्ष में होते हैं. रूस सैन्य तौर पर ताकतवर है इसलिए सामने आकर लड़ने की ना अमेरिका की हिम्मत है और न NATO की. यूक्रेन का दुर्भाग्य ये है कि वो यूरोप, अमेरिका का पिछलग्गू बनकर खुद की बर्बादी की तरफ बढ़ गया है. इतिहास देख लीजिए, ज्यादातर मामलों में अमेरिका की भूमिका महाभारत के शकुनी की तरह होती है. अमेरिका कितना साथ निभाता है, इसका अंदाजा इस बात से लगा लीजिए कि सबसे पहले उसी ने अपना दूतावास खाली किया. इसके बाद विदेशी लोगों के निकलने की जो भगदड़ मची, उस पर यूक्रेनी राष्ट्रपति को कहना पड़ा कि युद्ध से बड़ा नुकसान इस भगदड़ के कारण हो चुका है.
इस तनावपूर्ण समय में देश की मीडिया ज्यादातर जनमत का निर्माण कर रही हैं, इसलिए हमें रूस शैतान दिख रहा है और अमेरिका-यूरोप मानवता को बचाने वाले देवदूत. जबकि, दोनों ही बातें तथ्यों से परे हैं. फिलहाल, पूरे मामले को व्यावहारिक दृष्टि से देखिए तो रूस सही नजर आएगा. वैसे भी यूक्रेन की हरकतें लगभग पाकिस्तान जैसी हैं. जिस तरह पाकिस्तान अमेरिका से लाभ न मिले तो चीन के पास चला जाता है और चीन से बात न बने तो दोबारा अमेरिका के आगोश में आ जाता है. यूक्रेन को लगा कि वो अमेरिका और NATO से मोहब्बत करके रूस का धमका सकेगा. अब परिणाम देख लीजिए.
अगर इस मामले में थोड़ा राष्ट्रवाद का छोंक लगाकर देखा जाए तो जिस तरह भारत के लोग पाक अधिकृत कश्मीर POK को पाना चाहते हैं, वैसी ही स्थिति रूसियों की भी है. उन्होंने अपनी चाह को सच्चाई में बदल लिया है. इसी का प्रमाण ये है कि दोनेत्स्क और लुहांस्क अब एक नया देश है, जिसे रूस के अलावा सीरिया, निकारागुआ ने मान्यता भी दे दी है. वैसे, ये इलाका देर-सवेर रूस में ही शामिल हो जाएगा. अब मामला यहीं तक नहीं रुकेगा, ये और आगे तक जाएगा. क्योंकि रूस भले ही आर्थिक तौर पर कमजोर हो, लेकिन सैन्य रूप से किसी तरह कमजोर नहीं है.
फिलहाल, शुक्रवार को यूक्रेन ने रूस से बातचीत करने की पहल की है. जिस पर रूस बातचीत के लिए तैयार हो गया लेकिन, रूस का दो टूक कहना है कि यूक्रेन के सैन्यबल को हथियार डालने होंगे. वहीं, UN में रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाने की तैयारी हो रही है. इस पूरे मामले पर रूस का कहना है, कि वह युद्ध नहीं कर रहा है यह हितों के लिए सिर्फ सैन्य कार्रवाई है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से गुरूवार को भारत के पीएम भी करीब 25 मिनट तक बातचीत कर चुके हैं. शुक्रवार को चीनी राष्ट्रपति भी पुतिन से बातचीत कर चुके हैं.
खैर, युद्ध कोई भी हो, उसका परिणाम कभी अच्छा नहीं होता. जितने वाला भी युद्ध की कीमत चुकाता ही है. निकट अतीत में लीबिया, सीरिया, यमन, अफगानिस्तान, सर्बिया में युद्ध की भयावहता सामने आ चुकी है. युद्धों से जर्जर हुए कई अफ्रीकी देश तो अब चर्चा के लायक भी नहीं रहे. इसलिए कामना कीजिये कि युद्ध के हालात जल्द खत्म हों.