क्या प्रियंका गांधी कांग्रेस को नई पहचान देने में कामयाब हो सकेंगी?

2019 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश से सक्रिय राजनीति में क़दम रखा था, तब भले ही वे कोई कमाल नहीं दिखा सकीं, पर उसके बाद से राज्य में उनकी सक्रियता चर्चा में रही. विपक्ष के तौर पर एकमात्र प्रियंका ही थीं जो प्रदेश में हुई लगभग हर अवांछित घटना को लेकर योगी सरकार को घेरती नज़र आईं.

हाथरस-उन्नाव और लखीमपुर कांड को प्रमुखता से उठाकर प्रियंका गांधी ने यूपी में वेंटिलेटर पर पहुंच चुकी कांग्रेस में नई जान फूंकी है. आये जानते हैं कैसे हुई प्रियंका गाँधी की यूपी की राजनीती में धमाकेदार एंट्री। इसकी शुरुआत 2019 के बहुचर्चित सोनभद्र कांड से हुई, जहां ज़मीन विवाद में 11 आदिवासियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई. प्रियंका के पीड़ितों से मिलने के लिए पहुंचने पर स्थानीय प्रशासन ने उन्हें हिरासत में ले लिया तो वे धरने पर बैठ गईं और अंतत: मृतकों के परिजनों से मिलकर ही लौटीं और उन्हें 10-10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता भी दी.

जुलाई 2019 में सोनभद्र से शुरू हुआ प्रियंका का यह संघर्ष उन्नाव, हाथरस, लखीमपुर खीरी, आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी और यूपी में हर उस जगह दिखा जहां भी योगी सरकार में आमजन के साथ कुछ अवांछित घटित हुआ.

वे पीड़ितों से मिलने जहां भी गईं, अक्सर स्थानीय प्रशासन द्वारा उन्हें मिलने से रोका गया, हिरासत में लिया गया, यहां तक कि कुछ मौकों पर उनके साथ हाथापाई भी की गई. लेकिन, वे रुकी नहीं और पीड़ितों से मिलकर ही दम लिया. इस दौरान पीड़ितों के साथ उनकी मार्मिक तस्वीरों को वर्तमान भारतीय राजनीति के लिहाज से दुर्लभ बताने वालों की भी कमी नहीं थी.

इसी तरह, कभी वे CAA विरोधी प्रदर्शनों के दौरान गिरफ्तार किए गए पूर्व पुलिस अधिकारी एसआर दारापुरी से मिलने स्कूटर पर ही बैठकर निकल गईं, तो कभी लखीमपुर खीरी में प्रशासन द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद गेस्ट हाउस में झाड़ू लगाती देखी गईं.

कुल मिलाकर जब से उन्होंने यूपी से सक्रिय राजनीति में कदम रखा, तब से (खासकर कि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद) राज्य में विपक्ष के तौर पर सर्वाधिक सक्रिय वे और कांग्रेस पार्टी ही दिखी, न कि सपा और बहुजन समाज पार्टी.

तीन दशक के वनवास के बाद उत्तर प्रदेश में सत्ता के लिए नए सिरे से काम करने वाली कांग्रेस पार्टी इस बार महिलाओं और दलितों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. प्रियंका गाँधी और राहुल गाँधी अक्सर अत्याचार से पीड़ित यूपी के परिवारों के ज़ख्मों पर मरहम लगाते नज़र आ रहे हैं. कांग्रेस को मजबूती देने के लिए प्रियंका ने 2 प्रमुख प्रयोग किये हैं. पहला, चुनाव में महिलाओं को टिकट देने में 40 फीसदी आरक्षण. दूसरा, उनके द्वारा दिया गया लड़की हूं, लड़ सकती हूं का नारा.’

प्रियंका की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने यूपी में कांग्रेस को चर्चा में ला दिया. इससे पहले कांग्रेस चुनावी होड़ में शामिल होने की बात तो दूर, चर्चा में भी नहीं थी. 

इसलिए ये सवाल लाजमी हैं कि क्या चुनाव परिणामों में कांग्रेस को उसकी मेहनत का फल मिलेगा? क्या उसके प्रदर्शन में सुधार होगा? क्या प्रियंका द्वारा चुनाव को स्त्री केंद्रित करने का प्रयास कांग्रेस को लाभ पहुंचाएगा और वह देश में स्त्री केंद्रित नई राजनीति की अगुवा बन पाएगी?  इन सवालों का जबाब 10 मार्च को चुनावी नतीजे आने के बाद मिलेगा ! 

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